रविवार 12 अक्तूबर 2025 - 18:15
भारतीय धार्मिक विद्वानों का परिचय | अल्लामा सैयद आफ़ताब हुसैन

हौज़ा /पेशकश: दनिश नामा ए इस्लाम, इन्टरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, 

अल्लामा सैयद आफ़ताब हुसैन सन 1863 ईस्वी में पित्तन हेड़ी, ज़िला बिजनौर, सूबा उत्तर प्रदेश में पैदा हुए।

आप अपने अहद के एक यगाना और बे-नज़ीर आलिम थे।

आपके वालिद सैयद ग़ाज़ीउद्दीन हसन का शुमार पित्तन हेड़ी के अज़ीम ज़मींदारों में होता था।

इल्म की तलब ने आपको अपने वतन से मदरसा जाफ़रिया मीरापुर मुज़फ़्फ़रनगर और फिर मंसबिया अरेबिक कॉलेज मेरठ तक पहुँचाया।

उस वक़्त मंसबिया अरेबिक कॉलेज के प्रिंसिपल अल्लामा हाफ़िज़ क़ारी सैयद जाफ़र रिज़वी जारचवी थे जिन से आपने उलूम-ए-इस्लामी की तकमील की।उसके बाद आपने लाहौर का रुख़ किया और पंजाब यूनिवर्सिटी में जलील-उल-क़द्र असातेज़ा से कस्ब-ए-फ़ैज़ किया।

यूनिवर्सिटी के “मौलवी फ़ाज़िल” इम्तेहान में इम्तियाज़ी नंबरों से कामयाबी हासिल की और पूरे पंजाब में अव्वल मक़ाम पाया।

बाद-अज़ां नवाब सैयद सुल्तान मिर्ज़ा की कोशिशों से आपको  “ऐंग्लो अरेबिक स्कूल दिल्ली” में मुदर्रिस-ए-अव्वल मुक़र्रर किया गया।

मौलाना आफ़ताब हुसैन के मुम्ताज़ शागिर्दों में सबसे पहले मुफ़स्सिर ए-क़ुरआन मौलाना मक़बूल अहमद देहलवी हैं,जो आपकी रहनुमाई से नूर-ए-ईमान से मनव्वर हुए और मज़हब-ए-अहलेबैत इख़्तियार किया।

मौलाना मक़बूल अहमद अपनी मजालिस में अक़्सर फ़ख़्र से कहा करते: “मैं मौलवी आफ़ताब हुसैन का शागिर्द हूँ।”मौलाना मक़बूल अहमद के ख़ुत्बात में अपने उस्ताद मौलाना आफ़ताब हुसैन के तर्ज़-ए-बयान की झलक नुमायां थी।

मौलाना आफ़ताब हुसैन के बयान में अजीब और ग़ैर-मामूली तास्सुर था, यही वजह है कि न सिर्फ़ शिया बल्कि दूसरे मक़ातिब-ए-फ़िक्र के अफ़राद भी आपकी दिलनशीन तकरिरों से मुस्तफ़ीद होते थे।

आपके एक और मारूफ़ शागिर्द सैयद अहमद कबीर (साकिन शाहाबाद, करनाल) थे जो ज़ोह्द व इबादत में अपनी मिसाल आप थे।अल्लामा आफ़ताब हुसैन ग़ैर-मामूली ज़हानत, फ़साहत-व-बलाग़त, इल्म-व-अमल, अख़लाक़-ए-हुसना, तवाज़ो और वक़ार का पैकर थे।

दिल्ली में आपने मक़तब-ए-अहल-ए-हक़ के फ़रोग़ के लिए अमली जिददो-जहद की। मोमिनीन के तआवुन से नवाब सैयद हामिद अली ख़ाँ की मस्जिद और एक दीनी मदरसा क़ायम किया।

इसी के साथ आप शिया जामे मस्जिद कश्मीरी गेट दिल्ली के इमाम ए-जुमा की हैसियत से भी पहचाने गए।

रोज़नामा इमामिया लखनऊ 20 नवम्बर 1911 ईस्वी में दर्ज है कि आपने दिल्ली के शियों में एक नई रूह फूँक दी थी

और इसी वजह से आपको “मुसलिह-ए-रूहानी शियान-ए-दिल्ली” कहा जाता था।आप ही के क़याम से “अंजुमन-ए-शियातुस्सफ़ा” दिल्ली वुजूद में आई जो इस्लाही और तालीमी सरगर्मियों का मरकज़ बनी और आज तक सरगर्म-ए-अमल है।

आप हाज़िरजवाब और निहायत ज़हीन थे।एक बार आप मग़रिब के वक़्त मीर मर्तज़ा हुसैन बयान मेरठी से मुलाक़ात की ग़रज़ से उनके घर पहुँचे।

दरवाज़े के पीछे से आवाज़ आई: कौन है?

आप ने जवाब दिया: आफ़ताब।

बयान साहब ने हँसते हुए कहा: “अब तो मग़रिब का वक़्त है, आफ़ताब क्यों आया?” इस पर आपने बरजस्ता फ़रमाया: “मुर्तज़ा के लिए रजअत कर आया हूँ।”ये जुमला आज भी दिल्ली के मोमिनीन की यादों में ताज़ा है।

आपको मुतालेए से ख़ास शुग़ुफ़्तगी थी और अक़्सर रातें कुतुब-बेनी में जाग कर गुज़ारते।

अल्लाह ने आपको दो फ़र्ज़ंद अता किए: सैयद हसन (उर्फ़ बाबू) और मौलाना सैयद मोहम्मद देहलवी (ख़तीब-ए-आज़म)

जो एंग्लो अरेबिक कॉलेज में प्रोफ़ेसर रहे और ज़ोह्द व तक़वा में नुमायां थे।

आख़िरकार ये इल्म व हिदायत का आफ़ताब सन 1904 ईस्वी को दिल्ली में ग़ुरूब हो गया।ग़ुस्ल व कफ़न के बाद दरगाह पंजा शरीफ़ दिल्ली में शहीद-ए-राबे मिर्ज़ा मोहम्मद कामिल के मजार के सरहाने हज़ारों नम आँखों के हमराह सुपुर्द-ए-ख़ाक कर दिया गया।

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-10 पेज-236 दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2024 ईस्वी।

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